आधुनिक भारत का इतिहास:-
आधुनिक भारत का इतिहास (Modern Indian History) मुख्यतः 18वीं शताब्दी के मध्य से लेकर स्वतंत्रता और उसके बाद के काल तक फैला हुआ है। यह काल भारतीय उपमहाद्वीप में उपनिवेशवाद के आगमन, राष्ट्रीय आंदोलन के उदय, आज़ादी की लड़ाई, आज़ादी के बाद के प्रारंभिक वर्षों और सामाजिक-आर्थिक बदलावों को समेटता है। नीचे एक क्रमबद्ध रूपरेखा प्रस्तुत है:
1. प्रारंभिक उपनिवेशवादी दौर (1757 – 1857)
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प्लासी का युद्ध (1757)
- ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को पराजित किया।
- बंगाल में ब्रिटिश प्रभुत्व की नींव पड़ी और व्यापारिक कंपनी ने राजनैतिक शक्ति हासिल करनी शुरू की।
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बक्सर का युद्ध (1764)
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल, अवध और मुग़ल सम्राट की संयुक्त सेना को हराया।
- इलाहाबाद संधि के तहत कंपनी को बंगाल, बिहार और उड़ीसा में राजस्व वसूलने का अधिकार मिला (दीवानी अधिकार)।
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कंपनी शासन और विस्तार (1765 – 1857)
- डुअल शासन व्यवस्था, रेजिडेंट सिस्टम, सहायक संधियाँ, सब्सिडियरी अलायंस आदि नीतियों के तहत कंपनी का भारत के बड़े हिस्से पर कब्ज़ा।
- सामाजिक और आर्थिक शोषण बढ़ा, साथ ही कई सामाजिक-धार्मिक सुधारों के प्रयास भी हुए (जैसे सती प्रथा पर प्रतिबंध, अंग्रेज़ी शिक्षा का प्रसार)।
2. 1857 का विद्रोह और उसके परिणाम (1857 – 1858)
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विद्रोह के प्रमुख कारण
- ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की निरंतर विस्तारवादी नीतियाँ, भारतीय सैनिकों में असंतोष, धार्मिक-सांस्कृतिक भावनाओं का आहत होना (चर्बी वाले कारतूस का मुद्दा) और ज़मींदारों-रियासतों का कंपनी से असंतोष।
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विद्रोह का प्रसार
- मेरठ से शुरू होकर दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, झांसी, ग्वालियर आदि क्षेत्रों में फैला।
- नाना साहब, तात्या टोपे, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हज़रत महल जैसे नेतृत्वकारी चेहरों का उदय।
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विद्रोह की असफलता और असर
- समन्वय की कमी और आधुनिक हथियारों व संगठन की कमी के कारण विद्रोह विफल रहा।
- 1858 में ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त कर सीधे भारत पर नियंत्रण कर लिया (Government of India Act 1858)।
- रानी विक्टोरिया ने प्रोक्लेमेशन जारी कर भारतीयों को कुछ अधिकारों और रियायतों का आश्वासन दिया।
3. ब्रिटिश राज और राष्ट्रीय जागरण (1858 – 1905)
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ब्रिटिश प्रशासनिक नीतियाँ
- वायसराय पद की स्थापना (प्रथम वायसराय लॉर्ड कैनिंग)।
- प्रशासनिक केंद्रीकरण, रेलवे, डाक, तार, आधुनिक शिक्षा के प्रसार से एक नई मध्यमवर्गीय शिक्षित वर्ग का उदय।
- आर्थिक शोषण, भारी कर, कच्चे माल का निर्यात और भारत को तैयार माल का बाज़ार बनाने से भारतीय उद्योगों का पतन।
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सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण
- राजा राममोहन राय (ब्रह्म समाज), स्वामी दयानंद सरस्वती (आर्य समाज), स्वामी विवेकानंद (रामकृष्ण मिशन) आदि के नेतृत्व में समाज-सुधार आंदोलन।
- प्रार्थना समाज, सत्यशोधक समाज, अलीगढ़ आंदोलन (सर सैयद अहमद ख़ान) इत्यादि।
- आधुनिक शिक्षा के प्रसार और समाचार पत्रों के माध्यम से राष्ट्रीय चेतना का विकास।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना (1885)
- ए.ओ. ह्यूम के प्रयासों से 1885 में मुंबई में प्रथम अधिवेशन, अध्यक्ष: डब्ल्यू.सी. बनर्जी।
- प्रारंभिक रूप से उदारवादी (मॉडरेट) नेतृत्व, संवैधानिक सुधारों और संवाद के माध्यम से परिवर्तन की मांग।
4. स्वदेशी आंदोलन से गांधी युग तक (1905 – 1919)
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बंगाल विभाजन (1905)
- लॉर्ड कर्ज़न द्वारा बंगाल का विभाजन (पूर्वी बंगाल व असम, पश्चिमी बंगाल) किया गया।
- विभाजन के विरोध में स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा का प्रसार।
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क्रांतिकारी गतिविधियाँ
- अलीपुर षड्यंत्र केस (1908), क्रांतिकारी संगठन (अनुशीलन समिति, युगांतर), भगत सिंह से पहले के क्रांतिकारी जैसे खुदीराम बोस, प्रफुल्ल चाकी इत्यादि।
- हिंसक तरीकों से ब्रिटिश शासन को चुनौती।
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मुस्लिम लीग का गठन (1906)
- ढाका में नवाब सलीमुल्लाह आदि के नेतृत्व में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग की स्थापना।
- शुरुआत में अंग्रेज़ों का समर्थन, बाद में भारत की राजनीति में प्रमुख भूमिका।
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होमरूल आंदोलन (1916)
- बाल गंगाधर तिलक और एनी बेसेंट द्वारा देश में स्वशासन की माँग को लेकर आंदोलन।
- लोकमान्य तिलक का नारा: “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा।”
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लखनऊ समझौता (1916)
- कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच एकता का प्रयास, सांप्रदायिक समन्वय की पहल।
5. गांधी युग (1919 – 1947)
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रॉलेट एक्ट और जलियाँवाला बाग हत्याकांड (1919)
- रॉलेट एक्ट के विरुद्ध गांधीजी का सत्याग्रह; अमृतसर में जनरल डायर द्वारा निहत्थे लोगों पर गोलीबारी।
- राष्ट्रव्यापी रोष और असहयोग आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार।
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असहयोग आंदोलन (1920 – 1922)
- गांधीजी के नेतृत्व में विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार, सरकारी उपाधियों का त्याग, खादी का प्रचलन।
- चौरी-चौरा घटना के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया।
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सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930 – 1934)
- नमक सत्याग्रह (दांडी मार्च), नमक क़ानून तोड़ना, विदेशी कपड़ों का बहिष्कार।
- गोलमेज सम्मेलन (1930, 1931, 1932) में भारतीय प्रतिनिधियों की भागीदारी।
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भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
- द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा।
- व्यापक जन आंदोलन, लेकिन बड़े नेताओं की गिरफ़्तारी के कारण आंदोलन भूमिगत चला।
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मुस्लिम लीग और पाकिस्तान की मांग
- जिन्ना द्वारा ‘द्विराष्ट्र सिद्धांत’ का समर्थन, 1940 का लाहौर प्रस्ताव।
- हिंदू-मुस्लिम एकता में कमी, सांप्रदायिक तनाव बढ़ा।
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अंतिम चरण
- कैबिनेट मिशन योजना (1946), अंतरिम सरकार, माउंटबेटन योजना (1947)।
- भारत की आज़ादी और भारत-पाकिस्तान का विभाजन (14-15 अगस्त 1947)।
6. स्वतंत्रता के बाद प्रारंभिक काल (1947 – 1950)
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विभाजन के परिणाम
- बड़े पैमाने पर दंगे, शरणार्थियों का आवागमन, संपत्ति का बँटवारा।
- सांप्रदायिक हिंसा पर काबू पाने के लिए प्रशासनिक चुनौतियाँ।
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संविधान सभा और संविधान का निर्माण
- डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में प्रारूप समिति ने संविधान तैयार किया।
- 26 जनवरी 1950 को भारतीय गणराज्य का गठन।
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राष्ट्रीय एकता और नव-निर्माण
- देशी रियासतों का एकीकरण (सरदार वल्लभभाई पटेल की अहम भूमिका)।
- पंचवर्षीय योजनाएँ, आर्थिक विकास की नीतियाँ।
निष्कर्ष:-
आधुनिक भारत का इतिहास विदेशी सत्ता के विरोध, राष्ट्रीय एकता के विकास, सामाजिक सुधारों और अंततः स्वतंत्रता प्राप्ति की कहानी है। इसके बाद भारत ने लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को अपनाया और अपने सामाजिक-आर्थिक विकास की नींव रखी। आज़ादी के बाद भी भारत को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा—विभाजन का दंश, शरणार्थी समस्या, रियासतों का विलय, आर्थिक पिछड़ापन—लेकिन समय के साथ भारत ने एक मजबूत गणराज्य के रूप में अपनी पहचान बनाई।