नैतिक द्वंद्व: प्रशासनिक सेवा में निर्णय और उत्तरदायित्व
परिचय
“नैतिक द्वंद्व” (Ethical Dilemma) वह स्थिति होती है जब किसी व्यक्ति को दो या अधिक नैतिक सिद्धांतों के बीच चयन करना होता है, और हर विकल्प के अपने सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव होते हैं। यह प्रशासनिक सेवाओं में एक सामान्य किंतु जटिल चुनौती है, जहाँ निर्णय न केवल कानून के अनुरूप होना चाहिए, बल्कि न्याय, करुणा और लोकहित से भी प्रेरित होना चाहिए।
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नैतिक द्वंद्व की प्रकृति
नैतिक द्वंद्व मूलतः निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होता है:
1. व्यक्तिगत मूल्य बनाम पेशेवर कर्तव्य
उदाहरण: एक अधिकारी का रिश्तेदार अवैध निर्माण में लिप्त है। क्या वह कर्तव्य निभाएगा या निजी संबंध को प्राथमिकता देगा?
2. कानून बनाम न्याय की भावना
उदाहरण: एक गरीब किसान के पास दस्तावेज़ नहीं हैं, लेकिन वह वाजिब सहायता का हकदार है। क्या कानून को अक्षरश: लागू किया जाए या मानवीय दृष्टिकोण अपनाया जाए?
3. नीति बनाम व्यवहारिक स्थिति
उदाहरण: नियमों के तहत राहत सहायता तभी दी जा सकती है जब नुकसान का आकलन पूरा हो जाए, लेकिन आपातकालीन स्थिति त्वरित हस्तक्षेप मांगती है।
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प्रशासन में नैतिक द्वंद्व के उदाहरण
1. RTI और गोपनीयता
सूचना का अधिकार एक मूल अधिकार है, लेकिन कई बार जानकारी साझा करने से किसी की निजता या राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित हो सकती है।
2. राजनीतिक दबाव बनाम लोकहित
कभी-कभी राजनेता ऐसी मांग करते हैं जो प्रशासनिक दृष्टि से अनुचित होती है – जैसे एक अयोग्य व्यक्ति की नियुक्ति के लिए सिफारिश।
3. भ्रष्टाचार का बहिष्कार बनाम सामाजिक बहिष्कार का डर
कोई अधिकारी अपने ही विभाग के भ्रष्टाचार का खुलासा करता है, लेकिन इससे उसे व्यक्तिगत हानि का खतरा होता है।
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नैतिक निर्णय कैसे लिया जाए?
1. लोक सेवा मूल्यों पर आधारित दृष्टिकोण अपनाना:
निष्पक्षता (Impartiality)
उत्तरदायित्व (Accountability)
पारदर्शिता (Transparency)
सत्यनिष्ठा (Integrity)
2. गांधीजी का “अंत्योदय” सिद्धांत याद रखें:
“सबसे कमजोर और गरीब व्यक्ति के हित में तुम्हारा निर्णय कितना सही होगा?”
3. नैतिक दर्शन से मदद लेना:
कांत का कर्तव्य सिद्धांत (Deontology)
मिल का परिणामवाद (Utilitarianism)
अरस्तु का मध्यम मार्ग (Golden Mean)
4. अंतर्मन से संवाद (Conscience test):
स्वयं से पूछें – क्या मैं अपने निर्णय को जनता, परिवार और खुद के सामने सही ठहरा पाऊंगा?
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नैतिक द्वंद्व का समाधान: व्यवहारिक सुझाव
संगठनिक समर्थन: स्पष्ट आचार संहिता और संरक्षण नीति होनी चाहिए।
नैतिक शिक्षा और प्रशिक्षण: लोक सेवकों के लिए नियमित नैतिक प्रशिक्षण अनिवार्य हो।
लोकमत और मीडिया की भूमिका: पारदर्शिता बढ़ाने में जनसंचार माध्यम महत्वपूर्ण हैं।
Whistleblower संरक्षण कानून: ईमानदार अधिकारियों की रक्षा सुनिश्चित करनी होगी।
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निष्कर्ष
नैतिक द्वंद्व प्रशासनिक सेवा की वास्तविकता है, लेकिन यह चुनौती नहीं, बल्कि अवसर भी है – ऐसे निर्णय लेने का जो व्यक्तिगत और सार्वजनिक नैतिकता के बीच संतुलन बनाए। एक आदर्श लोकसेवक वह है जो ना केवल नियमों का पालन करता है, बल्कि मानवता और संवेदनशीलता के साथ लोकहित को सर्वोपरि रखता है।
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