प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक यथार्थ का चित्रण

प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक यथार्थ का चित्रण

 

परिचय:-

 

हिंदी कथा साहित्य के विकास में मुंशी प्रेमचंद का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है। उन्हें “उपन्यास सम्राट” के रूप में जाना जाता है, लेकिन उनकी कहानियाँ भी साहित्यिक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध और प्रभावशाली हैं। प्रेमचंद ने हिंदी कहानी को भावुक आदर्शवाद से निकालकर सामाजिक यथार्थ की भूमि पर खड़ा किया। उनकी कहानियाँ भारतीय समाज की समस्याओं, वर्गभेद, शोषण, स्त्री-दशा, जातिगत विषमता और नैतिक मूल्यों का यथार्थ चित्र प्रस्तुत करती हैं।

 

 

 

सामाजिक यथार्थ क्या है?

 

साहित्य में सामाजिक यथार्थ से अभिप्राय उस प्रवृत्ति से है, जिसमें लेखक समाज के यथार्थ को — जैसा कि वह है — बिना किसी श्रृंगार या कल्पना के, वस्तुनिष्ठ रूप में चित्रित करता है। प्रेमचंद की रचनाएँ इस प्रवृत्ति की श्रेष्ठ उदाहरण हैं।

 

 

 

प्रेमचंद की प्रमुख कहानियाँ और सामाजिक यथार्थ

 

1. पंच परमेश्वर

 

यह कहानी गाँव की पंचायती व्यवस्था और न्याय के सिद्धांत को दर्शाती है। दो मित्रों का न्याय के पथ पर मित्रता को त्याग देना सामाजिक मूल्यबोध की पराकाष्ठा को दर्शाता है। यह कहानी भारतीय ग्रामीण समाज की न्याय व्यवस्था और नैतिक संघर्ष का उत्कृष्ट चित्रण है।

 

2. सद्गति

 

जातिवाद और ब्राह्मणवाद पर सीधा प्रहार करती यह कहानी बताती है कि किस प्रकार एक दलित व्यक्ति की मृत्यु के बाद भी उसे सम्मान नहीं मिलता। यह कहानी सामाजिक असमानता और मानवीय संवेदना के अभाव को उजागर करती है।

 

3. ईदगाह

 

बाल मनोविज्ञान और भारतीय ग्रामीण जीवन के सामूहिक प्रेम और त्याग को यह कहानी अत्यंत मार्मिकता से प्रस्तुत करती है। हामिद की दादी के लिए चिमटा खरीदने का निर्णय एक गहरा सामाजिक संदेश देता है।

 

4. कफन

 

यह कहानी प्रेमचंद के यथार्थवाद की चरम सीमा को दर्शाती है। इसमें घीसू और माधव जैसे पात्रों के माध्यम से वह समाज की बेरोजगारी, गरीबी, संवेदना के ह्रास और नैतिक पतन को दर्शाते हैं। यह कहानी ‘कटु यथार्थ’ का प्रतिनिधित्व करती है।

 

 

 

प्रेमचंद की कहानियों की विशेषताएँ

 

सामाजिक मुद्दों की संवेदनशील प्रस्तुति

 

ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण

 

स्त्री पात्रों की सशक्त छवि (जैसे – दुखिया, झुनिया आदि)

 

भाषा की सादगी और देशज शब्दों का प्रयोग

 

कहानी में उद्देश्यधर्मिता (Didacticism)

 

 

 

 

प्रेमचंद की कहानियों का यथार्थवादी दृष्टिकोण

 

प्रेमचंद की कहानियाँ आदर्श और यथार्थ के बीच संतुलन बनाए रखती हैं। वे समाज की सच्चाइयों को उजागर करते हैं लेकिन उनके पात्र पूरी तरह से नकारात्मक या सकारात्मक नहीं होते। वे संघर्षशील होते हैं — परिस्थितियों से लड़ते हुए जीवन जीने का प्रयास करते हैं।

 

उनके पात्रों में प्रगतिशील चेतना, नैतिक द्वंद्व, और वर्गीय संघर्ष जैसे तत्व गहराई से विद्यमान रहते हैं।

 

 

 

वर्तमान समय में प्रासंगिकता

 

आज भी प्रेमचंद की कहानियाँ उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी उस समय थीं। गरीबी, जातिवाद, बेरोजगारी, स्त्री शोषण जैसे मुद्दे आज भी समाज में मौजूद हैं। ऐसे में प्रेमचंद का साहित्य न केवल साहित्यिक संदर्भ में, बल्कि समाज सुधार के औजार के रूप में भी देखा जाना चाहिए।

 

 

 

निष्कर्ष

 

प्रेमचंद की कहानियाँ भारतीय समाज के दर्पण की भाँति हैं, जिनमें हमें अपनी समस्याएँ और उनकी जड़ें दिखाई देती हैं। उन्होंने साहित्य को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं माना, बल्कि सामाजिक जागरण और संवेदना का स्रोत बनाया। UPSC जैसी परीक्षा के लिए प्रेमचंद की कहानियाँ न केवल साहित्यिक विश्लेषण में सहायक हैं, बल्कि समाज, संस्कृति और मानव मूल्यों की गहरी समझ भी प्रदान करती हैं।

 

 

 

संभावित UPSC प्रश्न

 

1. प्रेमचंद की कहानियों में सामाजिक यथार्थ की विशेषताओं पर चर्चा कीजिए।

 

 

2. ‘कफन’ और ‘सद्गति’ कहानियों के माध्यम से प्रेमचंद के यथार्थवाद को स्पष्ट कीजिए।

 

 

3. प्रेमचंद की कहानियाँ आज के सामाजिक परिप्रेक्ष्य में कितनी प्रासंगिक हैं?

 

 

 

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