🌍 “भारत के प्राकृतिक संसाधन: प्रकार, उपयोग और संरक्षण की आवश्यकता”
परिचय:
भारत प्रकृति की गोद में बसा एक समृद्ध देश है, जहाँ पर्वत, नदियाँ, वन, खनिज और जलवायु जैसे अनेक प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं। ये संसाधन न केवल देश की अर्थव्यवस्था का आधार हैं बल्कि जनजीवन, कृषि, उद्योग और ऊर्जा उत्पादन में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। लेकिन बढ़ती जनसंख्या और अंधाधुंध उपयोग के कारण इन संसाधनों पर खतरा मंडरा रहा है।
🔹 प्राकृतिक संसाधनों के प्रकार
1. जल संसाधन:
भारत में गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना, गोदावरी, कृष्णा आदि प्रमुख नदियाँ हैं।
कृषि और सिंचाई का मुख्य आधार
पेयजल, उद्योग और बिजली उत्पादन में उपयोग
2. खनिज संसाधन:
भारत में कोयला, लौह अयस्क, बॉक्साइट, तांबा, सोना, चूना पत्थर जैसे खनिज उपलब्ध हैं।
झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और कर्नाटक प्रमुख राज्य हैं
3. वन संसाधन:
भारत का लगभग 21.7% क्षेत्र वनों से आच्छादित है
इंधन, लकड़ी, औषधियाँ, जैव विविधता में योगदान
4. मिट्टी संसाधन:
भारत में छह प्रमुख प्रकार की मिट्टी है: जलोढ़, काली, लाल, लेटराइट, मरुस्थलीय और पर्वतीय
कृषि उत्पादन में महत्त्वपूर्ण भूमिका
5. ऊर्जा संसाधन:
पारंपरिक (कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस)
वैकल्पिक (सौर, पवन, जल, जैविक ऊर्जा)
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🔹 प्राकृतिक संसाधनों का महत्व
आर्थिक विकास में सहायक: उद्योग, कृषि और निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था
रोजगार सृजन: खनिज, वानिकी, ऊर्जा क्षेत्रों में रोजगार के अवसर
पर्यावरण संतुलन: वनों और जल स्रोतों का संरक्षण जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद करता है
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🔹 प्राकृतिक संसाधनों की चुनौतियाँ
अत्यधिक दोहन और अवैध खनन
जल प्रदूषण और भूजल का अंधाधुंध उपयोग
वनों की कटाई और जैव विविधता का संकट
मिट्टी का क्षरण और मरुस्थलीकरण
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🔹 संरक्षण के उपाय
1. पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग को बढ़ावा देना
2. वृक्षारोपण और वनों का संरक्षण
3. वाटर हार्वेस्टिंग और माइक्रो इरिगेशन
4. खनिजों का सतत और नियंत्रित खनन
5. नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देना
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🔹 सरकारी पहलें
जल शक्ति अभियान
राष्ट्रीय खनिज नीति
राष्ट्रीय वन नीति, 1988
PM-KUSUM योजना – किसानों को सौर ऊर्जा से जोड़ने के लिए
UNSDGs के अंतर्गत सतत विकास के लक्ष्य
🔚 निष्कर्ष
भारत के प्राकृतिक संसाधन हमारी सांस्कृतिक, आर्थिक और पारिस्थितिक समृद्धि की रीढ़ हैं। इनका विवेकपूर्ण और सतत उपयोग ही आने वाली पीढ़ियों को सुरक्षित भविष्य देगा। आज आवश्यकता है कि हम प्राकृतिक संसाधनों को न केवल पहचानें, बल्कि इनके संरक्षण और पुनर्भरण के प्रति गंभीर हो जाएँ।