भारत में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code – UCC): एक समसामयिक विमर्श
परिचय:
समान नागरिक संहिता
(Uniform Civil Code – UCC) का विचार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में निहित है, जो राज्य को यह निर्देश देता है कि वह भारत के समस्त नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करे। यह विषय हाल के वर्षों में न सिर्फ राजनीतिक बहस का केंद्र रहा है, बल्कि UPSC और राज्य PSC परीक्षाओं में भी बार-बार पूछा जा रहा है।
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समान नागरिक संहिता क्या है?
UCC का अर्थ है – भारत के सभी नागरिकों के लिए समान विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, गोद लेने आदि से जुड़े कानून लागू करना, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। वर्तमान में भारत में विभिन्न धर्मों के अनुसार अलग-अलग व्यक्तिगत कानून हैं – जैसे हिंदू लॉ, मुस्लिम लॉ, ईसाई लॉ आदि।
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UCC की आवश्यकता क्यों?
1. समानता का अधिकार: भारत का संविधान सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता का अधिकार देता है। UCC से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि सभी नागरिकों के लिए एक जैसे कानून लागू हों।
2. लैंगिक न्याय: कई व्यक्तिगत कानून महिलाओं के प्रति भेदभाव करते हैं। UCC महिलाओं को समान अधिकार देने में सहायक होगा।
3. राष्ट्र की एकता और अखंडता: एक समान कानून से समाज में एकता को बढ़ावा मिलेगा और धार्मिक आधार पर विभाजन कम होगा।
4. न्यायिक बोझ में कमी: एक समान कानून से न्यायालयों में जटिल मामलों की संख्या घटेगी और न्याय जल्दी मिलेगा।
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विरोध के कारण:
1. धार्मिक स्वतंत्रता में हस्तक्षेप: कई समूहों का मानना है कि UCC उनके धार्मिक रीति-रिवाजों में हस्तक्षेप करेगा।
2. विविधता का सम्मान: भारत एक विविधतापूर्ण देश है, जहां अलग-अलग समुदायों की परंपराएं हैं। एक समान कानून इन विविधताओं को नजरअंदाज कर सकता है।
3. राजनीतिक उद्देश्य: कुछ लोग इसे राजनीतिक एजेंडा मानते हैं और इसके समय व कार्यान्वयन पर सवाल उठाते हैं।
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सरकार की पहल:
हाल ही में कुछ राज्यों, जैसे उत्तराखंड, ने UCC लागू करने की प्रक्रिया शुरू की है। उत्तराखंड सरकार द्वारा गठित समिति ने UCC ड्राफ्ट तैयार किया है जिसमें विवाह की न्यूनतम आयु, तलाक की प्रक्रिया, गोद लेने के नियम आदि का उल्लेख है।
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न्यायालय की भूमिका:
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट्स ने कई बार केंद्र सरकार को UCC लागू करने के दिशा-निर्देश दिए हैं। कोर्ट का मानना है कि व्यक्तिगत कानूनों में असमानता भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के विपरीत है।
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निष्कर्ष:
UCC भारत में एक संवेदनशील और बहस का विषय है, लेकिन यह समानता और न्याय की दृष्टि से आवश्यक भी है। इसका उद्देश्य सभी नागरिकों को समान अधिकार और कर्तव्य देना है, न कि धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना। आवश्यकता है कि इसके कार्यान्वयन से पहले सभी समुदायों से संवाद किया जाए और एक सर्वसम्मत समाधान निकाला जाए।