राजपूत काल: वीरता और संस्कृति का स्वर्णिम युग
परिचय
राजपूत काल भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण युग था, जो 7वीं से 12वीं शताब्दी तक फैला रहा। इस समय उत्तर और पश्चिमी भारत में कई शक्तिशाली राजपूत वंशों का उदय हुआ। राजपूतों ने अपने शौर्य, स्वाभिमान और युद्ध-कौशल के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की। इस युग में समाज, संस्कृति, कला और स्थापत्य में भी उल्लेखनीय विकास हुआ।
राजपूतों का उदय और प्रमुख वंश
राजपूतों की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न मत हैं। कुछ इतिहासकार उन्हें वैदिक क्षत्रियों का वंशज मानते हैं, जबकि कुछ उन्हें गुर्जर, हूण और स्थानीय जनजातियों से उत्पन्न मानते हैं।
1. प्रतिहार वंश (8वीं – 11वीं शताब्दी)
संस्थापक – नागभट्ट प्रथम (लगभग 730 ई.)
प्रसिद्ध शासक – मिहिर भोज (836-885 ई.), जिन्होंने अरब आक्रमणों को रोका।
राजधानी – कन्नौज
यह वंश उत्तर भारत का प्रमुख शक्ति केंद्र था।
2. चौहान वंश (8वीं – 12वीं शताब्दी)
संस्थापक – वासुदेव
प्रसिद्ध शासक – पृथ्वीराज चौहान (1178-1192 ई.), जिन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध (1191 ई.) में मोहम्मद गोरी को हराया, लेकिन तराइन के द्वितीय युद्ध (1192 ई.) में पराजित हुए।
राजधानी – अजमेर, दिल्ली
3. परमार वंश (9वीं – 14वीं शताब्दी)
संस्थापक – उपेंद्र
प्रसिद्ध शासक – राजा भोज (1010-1055 ई.), जिन्होंने शिक्षा और कला को बढ़ावा दिया।
राजधानी – धार (मध्य प्रदेश)
4. सोलंकी वंश (चालुक्य) (10वीं – 13वीं शताब्दी)
संस्थापक – मूलराज सोलंकी
प्रसिद्ध शासक – भीमदेव प्रथम, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया।
राजधानी – अन्हिलवाड़ा (गुजरात)
5. गहड़वाल वंश (11वीं – 12वीं शताब्दी)
संस्थापक – चंद्रदेव
प्रसिद्ध शासक – जयचंद, जिन्होंने मोहम्मद गोरी से संघर्ष किया।
राजधानी – वाराणसी, कन्नौज
राजपूत समाज और संस्कृति
1. समाज व्यवस्था
समाज चार वर्णों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में विभाजित था।
राजपूत महिलाएँ वीरता और बलिदान के लिए प्रसिद्ध थीं। जौहर और सती प्रथा इस काल में प्रचलित थी।
2. धर्म और आस्था
राजपूत शासक हिंदू धर्म के अनुयायी थे, लेकिन जैन धर्म और बौद्ध धर्म को भी संरक्षण देते थे।
मंदिर निर्माण कला का विकास हुआ, जैसे – सोमनाथ मंदिर, खजुराहो मंदिर, दिलवाड़ा जैन मंदिर।
3. स्थापत्य और कला
इस काल में भव्य किलों, महलों और मंदिरों का निर्माण हुआ।
प्रमुख स्थापत्य:
चित्तौड़गढ़ और मेहरानगढ़ किले
खजुराहो के मंदिर (चंदेल वंश)
दिलवाड़ा जैन मंदिर (माउंट आबू)
राजपूतों के पतन के कारण
आंतरिक संघर्ष – राजपूत राज्य आपस में लड़ते रहे और एकजुट नहीं हुए।
मोहम्मद गोरी और तुर्क आक्रमण – 1192 ई. में तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद राजपूत सत्ता कमजोर हो गई।
नई सैन्य तकनीक – तुर्क आक्रमणकारियों की घुड़सवार सेना और धनुर्धारी सैनिकों ने राजपूतों को पराजित किया।
निष्कर्ष
राजपूत काल भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली युग था, जिसमें वीरता, शौर्य, कला और संस्कृति का अद्भुत विकास हुआ। हालाँकि आपसी संघर्ष और विदेशी आक्रमणों के कारण राजपूत सत्ता कमजोर हो गई, लेकिन उनका गौरव और पराक्रम आज भी भारतीय इतिहास में अमर है।