राष्ट्रीय हथकरघा दिवस: 7 अगस्त का महत्व, इतिहास और उद्देश्य
हर साल 7 अगस्त को भारत में ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ (National Handloom Day) मनाया जाता है। यह दिन हमारे देश की समृद्ध हस्तशिल्प और पारंपरिक बुनाई की परंपरा को सम्मान देने के लिए समर्पित है। साथ ही यह दिन ‘स्वदेशी आंदोलन’ की याद दिलाता है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक अहम हिस्सा था।
📜 राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का इतिहास
7 अगस्त 1905 को स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत बंगाल से हुई थी, जिसका उद्देश्य था – विदेशी वस्त्रों और उत्पादों का बहिष्कार और स्वदेशी वस्तुओं का उपयोग। इसी ऐतिहासिक दिन को ध्यान में रखते हुए, भारत सरकार ने वर्ष 2015 में पहली बार 7 अगस्त को ‘राष्ट्रीय हथकरघा दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की।
तब से यह दिन हर साल पूरे देश में मनाया जाता है और इसे मनाने का उद्देश्य है –
✅ भारत के हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देना
✅ बुनकरों को सम्मान और समर्थन देना
✅ स्वदेशी कपड़ों और वस्त्रों का उपयोग बढ़ाना
🧶 हथकरघा उद्योग का महत्व
भारत में हथकरघा उद्योग ना सिर्फ सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है, बल्कि यह देश के दूसरे सबसे बड़े रोजगार क्षेत्र में से एक है। यह क्षेत्र खासकर ग्रामीण भारत में महिलाओं और पारंपरिक कारीगरों को आजीविका देता है।
कुछ प्रसिद्ध भारतीय हथकरघा शैलियाँ:
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बनारसी सिल्क (उत्तर प्रदेश)
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कांचीपुरम सिल्क (तमिलनाडु)
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पाटन पटोला (गुजरात)
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बालूचरि और तांत (पश्चिम बंगाल)
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चंदेरी और माहेश्वरी (मध्य प्रदेश)
🎯 राष्ट्रीय हथकरघा दिवस क्यों जरूरी है?
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बुनकरों की मेहनत और कला को पहचान मिलती है
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युवाओं में स्वदेशी वस्त्रों के प्रति जागरूकता आती है
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भारत की सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित किया जाता है
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आत्मनिर्भर भारत की दिशा में एक मजबूत कदम
💬 निष्कर्ष (Conclusion)
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि भारत की आत्मा है। यह हमें हमारे बुनकरों के योगदान की याद दिलाता है और यह प्रेरणा देता है कि हम अपने देश के उत्पादों को अपनाकर उन्हें सशक्त बना सकते हैं।
आइए, 7 अगस्त को हम सभी संकल्प लें कि हम हथकरघा वस्त्रों को अपनाएंगे और स्वदेशी को सम्मान देंगे।