रासायनिक उर्वरक- कृषि में भूमिका और पर्यावरणीय प्रभाव

रासायनिक उर्वरक (Chemical Fertilizers): कृषि में भूमिका और पर्यावरणीय प्रभाव

परिचय:-

रासायनिक उर्वरकों का उपयोग आधुनिक कृषि प्रणाली में अत्यधिक महत्वपूर्ण बन चुका है। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में खाद्य उत्पादन को बढ़ाने के लिए इनका प्रयोग व्यापक रूप से किया जाता है। हालांकि, इनका अत्यधिक उपयोग न केवल मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है, बल्कि जल स्रोतों, वायु और पारिस्थितिकी तंत्र पर भी गंभीर प्रभाव डालता है। UPSC जैसे प्रतियोगी परीक्षाओं में यह विषय अक्सर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, और आर्थिक विकास से जुड़े प्रश्नों में आता है।

रासायनिक उर्वरक क्या हैं?

रासायनिक उर्वरक ऐसे कृत्रिम रूप से बनाए गए यौगिक होते हैं जो पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की आपूर्ति करते हैं। इनका वर्गीकरण मुख्यतः तीन श्रेणियों में होता है:

1. नाइट्रोजन आधारित उर्वरक (N): जैसे कि यूरिया, अमोनियम सल्फेट

2. फॉस्फोरस आधारित उर्वरक (P): जैसे कि सिंगल सुपर फॉस्फेट, डीएपी

3. पोटाश आधारित उर्वरक (K): जैसे कि म्युरेट ऑफ पोटाश

भारत में रासायनिक उर्वरकों की स्थिति

भारत विश्व के शीर्ष उर्वरक उपभोक्ताओं में से एक है। देश में सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला उर्वरक यूरिया है। भारत सरकार यूरिया पर सब्सिडी प्रदान करती है, जिससे यह किसानों को सस्ती दरों पर उपलब्ध होता है। हालांकि, इससे उर्वरकों के असंतुलित प्रयोग की प्रवृत्ति भी बढ़ी है।

रासायनिक उर्वरकों के लाभ

पैदावार में वृद्धि: रासायनिक उर्वरक फसल की उत्पादकता तेजी से बढ़ाते हैं।

त्वरित प्रभाव: इनका असर शीघ्र दिखता है, जिससे किसान को त्वरित लाभ मिलता है।

सुविधाजनक भंडारण और परिवहन: जैविक खाद की तुलना में इन्हें स्टोर करना आसान होता है।

नुकसान और पर्यावरणीय प्रभाव

1. मिट्टी की उर्वरता में गिरावट:

लगातार रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मिट्टी की प्राकृतिक जैविक संरचना नष्ट होती है और सूक्ष्मजीवों की संख्या घटती है।

2. जल स्रोतों का प्रदूषण:

उर्वरकों का अपवाह (runoff) जलाशयों में नाइट्रेट और फॉस्फेट की मात्रा बढ़ाता है, जिससे यूट्रोफिकेशन की समस्या होती है। इससे जलीय जीवन प्रभावित होता है।

3. मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:

अत्यधिक नाइट्रेट्स युक्त पानी पीने से ‘ब्लू बेबी सिंड्रोम’ और कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ता है।

4. ग्रीनहाउस गैसें:

नाइट्रोजन उर्वरकों से निकलने वाली गैस नाइट्रस ऑक्साइड एक प्रमुख ग्रीनहाउस गैस है जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ावा देती है।

सरकारी पहलें और वैकल्पिक उपाय

भारत सरकार ने उर्वरकों के संतुलित उपयोग को बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं:

नीम कोटेड यूरिया: यूरिया की चोरी रोकने और उसके धीमे अवशोषण को सुनिश्चित करने हेतु।

सॉइल हेल्थ कार्ड योजना: मिट्टी की जांच कर सही उर्वरक उपयोग की सलाह देना।

पीएम-प्रणाम योजना (2023): उर्वरकों के संतुलित प्रयोग को बढ़ावा देने हेतु।

वैकल्पिक समाधान:

1. जैविक खाद और वर्मी कम्पोस्ट

2. ग्रीन मैन्योरिंग (हरी खाद)

3. माइकोराइज़ा और अन्य जैविक उर्वरक

4. ड्रिप इरिगेशन और सूक्ष्म पोषण तकनीक

निष्कर्ष

रासायनिक उर्वरकों का संतुलित और वैज्ञानिक प्रयोग आज की आवश्यकता है। खाद्य सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण को भी समान रूप से महत्व देना होगा। UPSC जैसी परीक्षाओं में उम्मीदवारों को इस विषय पर बहुपक्षीय दृष्टिकोण से समझ होना चाहिए — जिसमें विज्ञान, पर्यावरण, कृषि नीति और सतत विकास सभी शामिल हों।

संभावित UPSC प्रश्न:

1. रासायनिक उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिए।

2. भारत सरकार द्वारा उर्वरकों के संतुलित उपयोग हेतु की गई पहलों का उल्लेख कीजिए।

3. रासायनिक उर्वरकों के विकल्पों की चर्चा कीजिए जो सतत कृषि को बढ़ावा दें।

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