रासायनिक युद्ध (Chemical Warfare): इतिहास, विज्ञान और आधुनिक प्रभाव” – UPSC विशेष

🔬 “रासायनिक युद्ध (Chemical Warfare): इतिहास, विज्ञान और आधुनिक प्रभाव” – UPSC विशेष

भूमिका:

रासायनिक युद्ध एक ऐसा विषय है जो विज्ञान (Chemistry) के साथ-साथ इतिहास, भू-राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों से भी जुड़ा है। UPSC परीक्षा में यह विषय GS Paper 3 (सुरक्षा, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी) और GS Paper 1 (आधुनिक इतिहास) में पूछा जा सकता है।

क्या होता है रासायनिक युद्ध?

रासायनिक युद्ध (Chemical Warfare) वह युद्ध तकनीक है जिसमें विषैली रासायनिक गैसों या पदार्थों का उपयोग दुश्मन को नष्ट करने या निष्क्रिय करने के लिए किया जाता है।

रासायनिक युद्ध का इतिहास:

प्रथम विश्व युद्ध (1914–1918):
पहली बार मस्टर्ड गैस और क्लोरीन गैस का इस्तेमाल हुआ।

द्वितीय विश्व युद्ध:
बड़े स्तर पर रासायनिक हथियारों का भंडारण किया गया, हालांकि ज्यादा उपयोग नहीं हुआ।

भारत और बांग्लादेश युद्ध:
अप्रत्यक्ष तौर पर कुछ संदिग्ध उपयोग की रिपोर्टें आई थीं, लेकिन पुष्ट नहीं हैं।

 

रासायनिक हथियार कैसे काम करते हैं?

ये हथियार शरीर के श्वसन तंत्र, त्वचा, आँखों और नसों पर प्रभाव डालते हैं। कुछ प्रमुख रसायन:

मस्टर्ड गैस – त्वचा को जलाने वाला एजेंट

नर्व एजेंट (Sarin, VX) – तंत्रिका प्रणाली को नुकसान

क्लोरीन गैस – फेफड़ों में जलन और दम घोंटना

 

अंतरराष्ट्रीय कानून और भारत:

Chemical Weapons Convention (CWC) – 1993:
इस समझौते के तहत रासायनिक हथियारों का निर्माण और उपयोग प्रतिबंधित है।
✅ भारत CWC का साइनकर्ता है और 2009 में अपने सभी रासायनिक हथियार नष्ट कर चुका है।

 

UPSC के दृष्टिकोण से उपयोग:

भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा नीति में रासायनिक, जैविक, परमाणु खतरों का विशेष स्थान है।

DRDO जैसी संस्थाएं इस पर शोध और सुरक्षा उपकरण बनाती हैं।

 

निष्कर्ष:

रासायनिक युद्ध केवल विज्ञान का विषय नहीं, बल्कि यह नैतिकता, वैश्विक सुरक्षा, और मानवाधिकारों से जुड़ा विषय भी है। UPSC उम्मीदवारों को इस विषय की बहु-आयामी समझ ज़रूरी है।

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