सिंधु घाटी सभ्यता

सिंधु घाटी सभ्यता: भारत की प्राचीनतम नगरीय सभ्यता

 

सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) विश्व की सबसे प्राचीन नगर सभ्यताओं में से एक थी। यह सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच फली-फूली, जिसमें 2600 ईसा पूर्व से 1900 ईसा पूर्व को इसका परिपक्व काल माना जाता है। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, क्योंकि इसका पहला पुरातात्विक स्थल हड़प्पा (पाकिस्तान) में खोजा गया था। यह सभ्यता मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के क्षेत्रों में फैली हुई थी।

 

 

 

1. भौगोलिक विस्तार

 

यह सभ्यता मुख्य रूप से सिंधु, घग्घर-हकरा और सरस्वती नदियों के किनारे विकसित हुई थी। यह वर्तमान पाकिस्तान, उत्तर-पश्चिमी भारत और अफगानिस्तान के कुछ हिस्सों तक फैली हुई थी। प्रमुख स्थलों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी शामिल हैं।

 

 

 

2. प्रमुख स्थलों का विवरण

 

 

 

3. नगर योजना और स्थापत्य कला

 

सिंधु घाटी सभ्यता की नगर योजना अत्यधिक विकसित थी।

 

सड़कों को Grid Pattern (जालीनुमा संरचना) में बनाया गया था, जो उत्तर-दक्षिण और पूर्व-पश्चिम दिशा में समकोण पर मिलती थीं।

 

घर पक्की ईंटों से बने थे और उनमें कई कमरे, आंगन और जल निकासी व्यवस्था थी।

 

Great Bath (महान स्नानागार) और Granaries (अन्नागार) जैसी सार्वजनिक इमारतें थीं।

 

जल निकासी प्रणाली अत्यंत विकसित थी; प्रत्येक घर से जुड़ी हुई नालियाँ थीं, जो मुख्य नाले से मिलती थीं।

 

 

 

 

4. सामाजिक एवं आर्थिक जीवन

 

समाज में विभिन्न वर्गों की उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं—शासक, व्यापारी, कारीगर और श्रमिक।

 

कृषि और पशुपालन प्रमुख व्यवसाय थे। गेहूं, जौ, कपास, सरसों, खजूर आदि की खेती की जाती थी।

 

कपास की खेती के सबसे पुराने प्रमाण यहीं से मिलते हैं।

 

पशुपालन में गाय, भैंस, भेड़, बकरी, कुत्ता, हाथी और ऊँट शामिल थे।

 

व्यापार के लिए मेसोपोटामिया, फारस और अफगानिस्तान से संबंध थे।

 

तांबा, कांसा, सोना और चांदी का उपयोग किया जाता था।

 

मोहरों (Seals) से व्यापार की पुष्टि होती है, जिन पर चित्रात्मक लिपि अंकित है।

 

 

 

 

5. धर्म एवं आस्थाएँ

 

मातृदेवी (Mother Goddess) की पूजा की जाती थी।

 

पशुपति महादेव (शिव के प्रारंभिक रूप) की उपासना के प्रमाण मिलते हैं।

 

वृक्ष (विशेषकर पीपल) और पशुओं (गाय, बैल, हाथी, गैंडा) की पूजा की जाती थी।

 

अग्नि और जल पूजा के प्रमाण भी मिलते हैं।

 

समाधि पद्धति से दफनाने और शवदाह दोनों के प्रमाण मिले हैं।

 

 

 

 

6. कला, शिल्प और तकनीक

 

मूर्तिकला: कांस्य की “नृत्य करती लड़की”, पशुपति मुहर प्रसिद्ध हैं।

 

मुद्राएं: सैकड़ों सील्स मिली हैं, जिन पर चित्रात्मक लिपि खुदी हुई है।

 

हथियार: तांबे और कांसे के बने थे, लेकिन कोई आक्रामक युद्ध सामग्री नहीं मिली।

 

बर्तन: चमकदार लाल और काले रंग के मिट्टी के बर्तन मिले हैं।

 

 

 

 

7. सिंधु लिपि

 

सिंधु लिपि चित्रात्मक (Pictographic) थी।

 

अब तक इसे पढ़ा नहीं जा सका है।

 

इस लिपि में 400 से 500 चिह्न पाए गए हैं, जो दाईं से बाईं ओर लिखे जाते थे।

 

 

 

 

8. पतन के कारण

 

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में निश्चित प्रमाण नहीं हैं, लेकिन इतिहासकारों ने कुछ संभावित कारण बताए हैं:

 

1. प्राकृतिक आपदाएँ: भूकंप, बाढ़ और जलवायु परिवर्तन के कारण सभ्यता प्रभावित हुई।

 

 

2. नदी मार्ग का परिवर्तन: सरस्वती नदी के सूखने से जल संकट उत्पन्न हुआ।

 

 

3. आर्यों का आगमन: आर्यों के आक्रमण और संघर्ष के कारण हड़प्पा सभ्यता का पतन हुआ, लेकिन यह एक विवादित सिद्धांत है।

 

 

4. व्यापार का पतन: व्यापार मार्गों के अवरुद्ध होने से आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ।

 

 

 

 

 

9. महत्व और विरासत

 

सिंधु घाटी सभ्यता को भारत की पहली नगरीय सभ्यता माना जाता है।

 

यहाँ की नगर योजना, जल निकासी प्रणाली और वास्तुकला अद्वितीय थी।

 

कला, शिल्प और व्यापारिक संबंधों ने इसे वैश्विक पहचान दिलाई।

 

यह सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप की सांस्कृतिक नींव मानी जाती है।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की महानतम प्राचीन सभ्यताओं में से एक थी, जो अत्यधिक विकसित शहरी संरचना, व्यापार, कला, और संस्कृति के लिए प्रसिद्ध थी। इसके पतन के बावजूद, इसकी उपलब्धियाँ आज भी प्रेरणा देती हैं। अगर इसकी लिपि को पढ़ा जा सके, तो यह सभ्यता और अधिक रहस्यों को उजागर कर सकती है।

 

 

 

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