प्रतिहार वंश (7वीं से 11वीं शताब्दी)

प्रतिहार वंश (7वीं से 11वीं शताब्दी)

 

प्रतिहार वंश भारत के प्रमुख राजवंशों में से एक था, जिसने 7वीं से 11वीं शताब्दी तक उत्तरी भारत पर शासन किया। यह वंश मुख्य रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में प्रभावी था और इसे गुर्जर-प्रतिहार वंश के नाम से भी जाना जाता है।

 

 

 

प्रतिहार वंश की उत्पत्ति

 

प्रतिहारों की उत्पत्ति को लेकर विभिन्न मत हैं:

 

1. कुछ इतिहासकार इन्हें गुर्जर जाति से संबंधित मानते हैं।

 

 

2. कुछ इन्हें क्षत्रिय (राजपूत) मानते हैं।

 

 

3. कुछ इन्हें ब्राह्मणों का योद्धा वर्ग मानते हैं।

 

 

 

प्रतिहार शब्द का अर्थ “रक्षक” या “द्वारपाल” होता है। ऐसा कहा जाता है कि यह वंश रामायण के लक्ष्मण से जुड़ा है, जिन्होंने भगवान राम की सेवा में “द्वारपाल” की भूमिका निभाई थी।

 

 

 

प्रतिहार वंश के प्रमुख शासक

 

1. नागभट्ट प्रथम (730-756 ई.)

 

प्रतिहार वंश का संस्थापक माना जाता है।

 

उसने अरब आक्रमणकारियों को हराया और भारत की पश्चिमी सीमाओं की रक्षा की।

 

उसकी राजधानी उज्जैन थी।

 

 

2. वत्सराज (775-800 ई.)

 

इसने कन्नौज पर अधिकार कर लिया और इसे अपनी राजधानी बनाया।

 

पाल वंश के धर्मपाल और राष्ट्रकूट वंश के ध्रुव के साथ इसका संघर्ष हुआ।

 

 

3. नागभट्ट द्वितीय (800-833 ई.)

 

उसने धर्मपाल (पाल वंश) और गोविंद III (राष्ट्रकूट वंश) को हराकर कन्नौज पर फिर से अधिकार कर लिया।

 

उसने अरबों के आक्रमण को भी सफलतापूर्वक रोका।

 

कन्नौज को अपनी राजधानी बनाकर शासन किया।

 

 

4. मिहिरभोज (836-885 ई.)

 

प्रतिहार वंश का सबसे शक्तिशाली राजा था।

 

उसे आदिवराह की उपाधि प्राप्त थी।

 

उसने पाल और राष्ट्रकूट वंशों के साथ संघर्ष किया लेकिन कन्नौज की सत्ता को बनाए रखा।

 

अरब यात्रियों के अनुसार, उस समय भारत का सबसे शक्तिशाली राजा मिहिरभोज था।

 

 

5. महेंद्रपाल प्रथम (885-910 ई.)

 

मिहिरभोज का उत्तराधिकारी था।

 

इसने बंगाल और बिहार के कुछ हिस्सों पर विजय प्राप्त की।

 

 

6. राजपाल (10वीं शताब्दी)

 

इस काल में प्रतिहार साम्राज्य कमजोर होने लगा।

 

राष्ट्रकूटों और पालों के बढ़ते प्रभाव के कारण प्रतिहार शक्ति धीरे-धीरे कम हो गई।

 

 

7. यशपाल (11वीं शताब्दी)

 

अंतिम शक्तिशाली प्रतिहार शासक।

 

उसके बाद, गज़नवी आक्रमण (महमूद गजनवी, 1018 ई.) और स्थानीय विद्रोहों के कारण प्रतिहार साम्राज्य समाप्त हो गया।

 

 

 

 

प्रतिहार वंश की विशेषताएँ

 

1. त्रिपक्षीय संघर्ष – प्रतिहार, पाल और राष्ट्रकूट वंशों के बीच कन्नौज के लिए संघर्ष हुआ।

 

 

2. अरब आक्रमणों को रोका – प्रतिहारों ने सिंध और पश्चिमी भारत में अरबों के आक्रमण को रोककर भारत की रक्षा की।

 

 

3. शक्तिशाली सेना – अरब यात्री सुलेमान ने लिखा कि प्रतिहारों की सेना भारत में सबसे बड़ी और शक्तिशाली थी।

 

 

4. संस्कृति और कला –

 

प्रतिहारों के समय में मंदिर निर्माण को बढ़ावा मिला।

 

खजुराहो के मंदिर प्रतिहार शैली के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

 

 

 

 

 

 

प्रतिहार वंश का पतन

 

राष्ट्रकूट और पाल वंशों से संघर्ष के कारण उनकी शक्ति कमजोर हो गई।

 

महमूद गजनवी के आक्रमण (1018 ई.) से कन्नौज का पतन हो गया।

 

धीरे-धीरे, स्थानीय शक्तियों ने प्रतिहार वंश के अवशेषों पर कब्जा कर लिया।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

प्रतिहार वंश ने उत्तर भारत में लगभग 300 वर्षों तक शासन किया और अरब आक्रमणों को रोककर भारतीय संस्कृति की रक्षा की। इनका योगदान भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से कन्नौज के गौरवशाली शासन और मंदिर स्थापत्य कला के क्षेत्र में।

 

 

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