चंद्रशेखर आज़ाद: आज़ादी के असली ‘आज़ाद’
भारत की स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में कई नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज हैं, लेकिन जो नाम शौर्य, साहस और बलिदान की प्रतिमूर्ति बना – वो था चंद्रशेखर आज़ाद। उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाबरा गाँव (अब ‘आज़ाद नगर’) में हुआ था। उनका असली नाम चंद्रशेखर तिवारी था, लेकिन देश के लिए जीने और मरने का ऐसा संकल्प लिया कि खुद को हमेशा के लिए ‘आज़ाद’ कहने लगे।
बचपन से ही क्रांतिकारी सोच
चंद्रशेखर का झुकाव बचपन से ही आज़ादी की लड़ाई की ओर था। मात्र 15 वर्ष की उम्र में उन्होंने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और जब उन्हें ब्रिटिश अदालत में पेश किया गया तो उन्होंने “मेरा नाम आज़ाद है, पिता का नाम स्वतंत्रता और पता जेल” बताया। इस जवाब से ब्रिटिश अफसर चौंक गए, लेकिन इसी से उनका नाम ‘आज़ाद’ पड़ गया।
हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA)
गांधी जी के आंदोलन के स्थगित होने के बाद, आज़ाद का रुझान सशस्त्र क्रांति की ओर हुआ। वे महान क्रांतिकारी रामप्रसाद बिस्मिल से जुड़े और HSRA का हिस्सा बने। इस संगठन का उद्देश्य था – अंग्रेजों को ताकत के दम पर भारत से बाहर निकालना।
काकोरी कांड – हिम्मत की मिसाल
1925 में बिस्मिल, अशफाकउल्ला, राजेंद्र लाहिड़ी और चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवाओं ने ब्रिटिश खजाने को लूटने की योजना बनाई जिसे इतिहास में “काकोरी ट्रेन डकैती” कहा जाता है। यह सिर्फ एक डकैती नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार की नींव हिलाने का प्रयास था। बाद में सभी साथी पकड़े गए, लेकिन आज़ाद गिरफ्तार नहीं हुए।
भगत सिंह के प्रेरणास्त्रोत
चंद्रशेखर आज़ाद ने ना केवल स्वयं क्रांति की मशाल जलाए रखी, बल्कि भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु जैसे युवा क्रांतिकारियों को मार्गदर्शन भी दिया। भगत सिंह के लिए आज़ाद बड़े भाई और गुरु समान थे। संसद बम कांड और अन्य क्रांतिकारी योजनाओं में आज़ाद ने मुख्य भूमिका निभाई।
इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में वीरगति
27 फरवरी 1931 को अंग्रेजों ने चंद्रशेखर आज़ाद को इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब ‘आजाद पार्क’) में घेर लिया। उन्होंने बहादुरी से मुकाबला किया, लेकिन जब गोलियाँ खत्म हो गईं तो खुद को गोली मार ली, ताकि अंग्रेज उन्हें जिंदा न पकड़ सकें। वे अपने उस वादे पर अडिग रहे – “मैं आज़ाद हूँ और आज़ाद ही मरूँगा।”
चंद्रशेखर आज़ाद की विशेषताएँ:
✊ अपार साहस और वीरता
🇮🇳 राष्ट्र के प्रति निष्ठा
👥 युवाओं को क्रांति से जोड़ने का जूनून
🏹 हर कदम पर अंग्रेजों का सामना करने की रणनीत
आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा
आज चंद्रशेखर आज़ाद सिर्फ एक नाम नहीं, आज़ादी की भावना का प्रतीक हैं। जब-जब देशभक्ति की बात होती है, तब-तब आज़ाद की शहादत याद की जाती है। उन्होंने सिखाया कि ज़िंदगी लंबी नहीं, बड़ी होनी चाहिए – और वही उन्होंने कर दिखाया ।
✍️ निष्कर्ष
चंद्रशेखर आज़ाद जैसे नायक इतिहास के पन्नों में अमर हो जाते हैं, लेकिन ज़रूरत है कि हम उनके विचारों को वर्तमान में अपनाएं। वे सिर्फ बंदूक चलाने वाले क्रांतिकारी नहीं थे, बल्कि आत्मसम्मान और बलिदान की जीवंत मिसाल थे।
उनकी जयंती हो या शहादत दिवस, हमें उनके आदर्शों को याद कर नई पीढ़ी को भी प्रेरित करना चाहिए।
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