भारत में बायोमेट्रिक डेटा और निजता का संकट: आधार, फेस रिकग्निशन और डिजिटल निगरानी

भारत में बायोमेट्रिक डेटा और निजता का संकट: आधार, फेस रिकग्निशन और डिजिटल निगरानी

 

🔍 भूमिका (Introduction)

 

21वीं सदी की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि तकनीक जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है, उतनी ही तेज़ी से व्यक्तिगत निजता का हनन भी हो रहा है। भारत में बायोमेट्रिक डेटा, जैसे कि आधार कार्ड, फेशियल रिकग्निशन और CCTV निगरानी जैसे साधनों का विस्तार तो हो रहा है, लेकिन इनसे जुड़ी निजता की सुरक्षा और कानूनी ढांचे अब भी अधूरे हैं। आज जब हम “डिजिटल इंडिया” के युग में हैं, तब यह सवाल अहम हो जाता है — क्या हम अपनी निजता की कीमत पर तकनीकी प्रगति कर रहे हैं?

 

भारत में बायोमेट्रिक डेटा का संग्रह और चेहरे की पहचान तकनीक के बढ़ते उपयोग को दर्शाता चित्र – जिसमें नागरिकों की निजता पर चिंता व्यक्त की गई है।
आधार और फेशियल रिकग्निशन के माध्यम से बायोमेट्रिक निगरानी – भारत में निजता बनाम सुरक्षा की बहस।

 

📌 बायोमेट्रिक डेटा क्या है?

 

बायोमेट्रिक डेटा वह व्यक्तिगत जानकारी होती है जो व्यक्ति के शरीर की विशेषताओं पर आधारित होती है, जैसे:

 

फिंगरप्रिंट

 

आईरिस स्कैन

 

चेहरे की पहचान (Facial Recognition)

 

आवाज़ का नमूना आदि

 

 

भारत में आधार योजना (UIDAI) के तहत हर नागरिक का बायोमेट्रिक डाटा संग्रहित किया गया है।

 

 

 

⚠️ वर्तमान संकट: निजता बनाम सुरक्षा

 

🔸 आधार डेटा और लीक की घटनाएँ

 

कई रिपोर्ट्स में यह सामने आया है कि आधार डेटा की सुरक्षा भंग हुई है।

 

2025 की एक RTI में पाया गया कि 10 करोड़ से अधिक आधार नंबर बिना सहमति के सार्वजनिक हुए।

 

 

🔸 फेशियल रिकग्निशन का अनियंत्रित प्रयोग

 

देश में रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, स्कूल, यहाँ तक कि सरकारी दफ्तरों में बिना सहमति के चेहरे की पहचान तकनीक का उपयोग हो रहा है।

 

NCRB (National Crime Records Bureau) द्वारा उपयोग किए जा रहे सिस्टम में डेटा संरक्षण कानूनों की कोई स्पष्ट निगरानी नहीं है।

 

 

🔸 Surveillance State का खतरा

 

चीन की तरह भारत में भी अब “सर्विलांस स्टेट” बनने का खतरा दिखने लगा है।

 

आम नागरिकों की गतिविधियाँ रिकॉर्ड हो रही हैं — बिना उन्हें सूचित किए।

 

 

 

 

⚖️ कानूनी स्थिति: कितनी सुरक्षित है हमारी निजता?

 

🔹 सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला (2017)

 

Puttaswamy Judgment में निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया गया।

 

 

🔹 Digital Personal Data Protection Act, 2023

 

भारत ने अपना पहला व्यापक डेटा संरक्षण कानून लागू किया है।

 

परंतु, इसमें सरकारी एजेंसियों को डेटा से छूट मिलने पर कई विशेषज्ञों ने चिंता जताई है।

 

 

 

 

💡 संभावित समाधान

 

1. डेटा का विकेंद्रीकरण (Decentralization) — नागरिकों को अपने डाटा पर स्वामित्व मिलना चाहिए।

 

 

2. सरकार की पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाई जाए।

 

 

3. फेस रिकग्निशन और AI आधारित निगरानी के लिए सख्त रेगुलेशन लाए जाएं।

 

 

4. डेटा शिक्षा को स्कूल स्तर पर शामिल किया जाए ताकि नागरिक जागरूक रहें।

 

 

5. निजता आयोग (Privacy Commission) की स्थापना की जाए।

 

 

 

 

 

👁️ मानवीय दृष्टिकोण (Human Touch)

 

कल्पना कीजिए कि कोई आपके चेहरे की पहचान कर रहा है, आपकी गतिविधियाँ रिकॉर्ड कर रहा है और आपसे बिना पूछे आपके निजी डेटा का विश्लेषण कर रहा है — क्या आपको यह स्वीकार्य लगेगा?

एक लोकतंत्र में नागरिकों की निजता का सम्मान उतना ही ज़रूरी है जितना उनके जीवन और स्वतंत्रता का।

 

तकनीकी प्रगति का स्वागत करना चाहिए, लेकिन संविधान की आत्मा — “व्यक्तिगत गरिमा” को सुरक्षित रखना उससे भी अधिक आवश्यक है।

 

 

 

✅ निष्कर्ष

 

भारत आज एक डिजिटल महाशक्ति बनने की ओर अग्रसर है, परंतु यह यात्रा तभी सार्थक होगी जब प्रौद्योगिकी के साथ-साथ मानवाधिकारों की रक्षा भी समानांतर चलेगी।

निजता कोई विलासिता नहीं, बल्कि एक बुनियादी अधिकार है। आधार हो, CCTV हो या फेशियल रिकग्निशन — प्रत्येक कदम पर एक सवाल हमेशा ज़िंदा रहना चाहिए: “क्या यह तकनीक मेरे अधिकारों की रक्षा कर रही है या उन्हें निगल रही है?”

डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) – भारत का नया वैश्विक नेतृत्व मॉडल

Leave a Comment

Top 10 Amazing GK Facts You Must Know in 2025 | Daily GK Updates Donald Trump: 47th U.S. President – Journey, Comeback & Controversies (2025) दुनिया के 10 अद्भुत GK Facts | रोचक सामान्य ज्ञान One-Liner GK Questions – 2025 ऑनलाइन गेमिंग और ई-स्पोर्ट्स का भविष्य 2025 | India’s Gaming Revolution