🪔 परिचय
जैन धर्म भारत के प्राचीनतम धर्मों में से एक है, जिसकी नींव अहिंसा (non-violence), सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह जैसे महान सिद्धांतों पर आधारित है। यह धर्म आत्मा की शुद्धि के माध्यम से मोक्ष प्राप्ति की बात करता है — बिना किसी बाहरी ईश्वर की पूजा किए।
🙏 तीर्थंकरों की परंपरा और महावीर स्वामी
जैन धर्म में 24 तीर्थंकरों को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है।
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पहले तीर्थंकर: ऋषभदेव (आदिनाथ)
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अंतिम तीर्थंकर: महावीर स्वामी (599–527 ई.पू.)
महावीर स्वामी, जिन्होंने 30 वर्ष की आयु में घर त्याग कर कठिन तपस्या की और अंततः कैवल्य ज्ञान (सर्वज्ञता) प्राप्त की, उन्होंने जैन धर्म को सुव्यवस्थित रूप से प्रचारित किया।
📜 जैन धर्म के पांच महाव्रत
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अहिंसा – किसी भी जीव को हानि न पहुँचाना
जैन धर्म चित्र, भगवान महावीर फोटो -
सत्य – सच्चा बोलना
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अस्तेय – चोरी न करना
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ब्रह्मचर्य – इंद्रिय संयम
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अपरिग्रह – मोह-माया से दूरी
ये नियम सिर्फ साधुओं के लिए नहीं, बल्कि गृहस्थ अनुयायियों के लिए भी आंशिक रूप से पालन योग्य हैं।
📚 जैन ग्रंथ
जैन धर्म के प्रमुख ग्रंथों को आगम ग्रंथ कहा जाता है, जो महावीर स्वामी के उपदेशों पर आधारित हैं।
जैन साहित्य दो भागों में विभाजित होता है:
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दिगंबर आगम (अनुमान आधारित)
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श्वेतांबर आगम (लिखित रूप में उपलब्ध)
🕍 दो प्रमुख संप्रदाय
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दिगंबर: मुनि वस्त्र नहीं पहनते, कठोर तप का पालन करते हैं
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श्वेतांबर: मुनि सफेद वस्त्र पहनते हैं, थोड़ा व्यावहारिक जीवन जीते हैं
दोनों संप्रदायों में तीर्थंकरों की पूजा विधि व दृष्टिकोण में कुछ भिन्नताएँ हैं, परंतु मूल सिद्धांत समान हैं।
🌍 जैन धर्म का योगदान
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अहिंसा का दर्शन: गांधी जी भी जैन विचारधारा से प्रेरित हुए।
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पर्यावरण संरक्षण: जीवों के प्रति करुणा, कम संसाधनों का उपयोग, शुद्ध आहार – यह सब आज की ग्रीन थिंकिंग से मेल खाता है।
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शाकाहार को बढ़ावा: जैन धर्म ने भारतीय संस्कृति में शुद्ध शाकाहार और संयमित जीवनशैली को प्रोत्साहित किया।
🤍 आधुनिक युग में जैन धर्म की प्रासंगिकता
आज के भौतिकवादी समय में जैन धर्म का “अपरिग्रह” (कम में संतोष) और “अहिंसा” का संदेश पहले से कहीं अधिक ज़रूरी है।
मेटल स्ट्रॉ यूज़ करना, प्लास्टिक से परहेज़, जीवों के प्रति संवेदनशीलता – ये सब जैन परंपरा की आधुनिक छवियाँ हैं।
🙌 निष्कर्ष (Human Touch)
जैन धर्म केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि एक सच्चा जीवन दर्शन है – जिसमें संयम, त्याग और आत्मज्ञान की सुंदरता है।
यह धर्म हमें सिखाता है कि बाहरी सुखों में नहीं, बल्कि अंतरात्मा की शुद्धता में ही सच्चा आनंद है।
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