📝 राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP): भारतीय संविधान की आत्मा
📌 Introduction (परिचय)
भारतीय संविधान के भाग 4 (अनुच्छेद 36 से 51) में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy – DPSP) एक ऐसी मार्गदर्शिका है जो भारत के सामाजिक-आर्थिक न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त करने का आधार प्रदान करती है। ये तत्व भले ही न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, लेकिन राज्य के लिए ये नीति निर्धारण के दौरान अनिवार्य विचार माने गए हैं।
📚 DPSP का इतिहास और स्रोत
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की प्रेरणा आयरलैंड के संविधान से ली गई है। साथ ही इनमें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सामाजिक न्याय के आदर्शों की भी झलक मिलती है। इनका उद्देश्य भारत को कल्याणकारी राज्य (Welfare State) बनाना है।

🔍 DPSP के प्रमुख वर्गीकरण
भारतीय संविधान में DPSP को तीन श्रेणियों में बाँटा गया है:
✅ 1. सामाजिकवादी सिद्धांत (Socialistic Principles)
समान वेतन और कार्य के अवसर
गरीबों के लिए समान न्याय
मजदूरों का कल्याण
✅ 2. गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)
ग्राम पंचायतों का विकास
शराबबंदी
खादी और कुटीर उद्योग को बढ़ावा
गौ संरक्षण
✅ 3. उदारवादी सिद्धांत (Liberal Principles)
अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा
बालकों का मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा
न्यायपालिका की स्वतंत्रता
अल्पसंख्यकों की सुरक्ष
⚖️ DPSP बनाम मौलिक अधिकार
जहां मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) व्यक्ति के न्यायिक संरक्षण योग्य अधिकार हैं, वहीं DPSP केवल राजनीतिक और नैतिक दायित्व हैं। फिर भी, सर्वोच्च न्यायालय ने कई मामलों में यह माना है कि मौलिक अधिकार और DPSP एक-दूसरे के पूरक हैं, न कि विरोधी।
🏛️ महत्वपूर्ण संविधान संशोधन
42वां संविधान संशोधन (1976): कई नए DPSP जोड़े गए, जैसे पर्यावरण संरक्षण (Art 48A) और बच्चों की शिक्षा (Art 39F)।
86वां संशोधन (2002): शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार बना, लेकिन Art 45 के अंतर्गत 6–14 वर्ष तक के बच्चों को शिक्षा देने की बात बनी रही।
🌱 DPSP का आधुनिक महत्व
आज भी सरकारी नीतियाँ, योजनाएँ जैसे:
मनरेगा,
मिड-डे मील योजना,
आयुष्मान भारत,
स्वच्छ भारत मिशन,
इन सभी की जड़ें कहीं न कहीं DPSP में ही निहित हैं।
🧠 UPSC/MPPSC दृष्टिकोण से उपयोगी तथ्य
DPSP अनुच्छेद 36 से 51 में वर्णित है।
यह न्यायालय में लागू नहीं किया जा सकता (Non-Justiciable)।
संविधान के भाग 4 (Part IV) में आता है।
Article 51 में अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की बात कही गई है।
📌 निष्कर्ष (Conclusion)
राज्य के नीति निर्देशक तत्व भारतीय लोकतंत्र की वह मौन आत्मा हैं जो बिना किसी कानूनी बाध्यता के भी राज्य को जन-कल्याण के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। यही भारत के संविधान की विशेषता है – अधिकार और कर्तव्यों का संतुलन।
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