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वन नेशन, वन इलेक्शन (एक राष्ट्र, एक चुनाव) – UPSC के लिए एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

वन नेशन, वन इलेक्शन (एक राष्ट्र, एक चुनाव) – UPSC के लिए एक विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण

 

परिचय:

“वन नेशन, वन इलेक्शन” यानी एक राष्ट्र, एक चुनाव की संकल्पना भारत की राजनीति में एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और नीति आयोग द्वारा इस पर जोर दिए जाने के बाद यह विषय संविधान, लोकतंत्र, संघवाद, चुनाव सुधार जैसे UPSC के कई पेपरों में प्रासंगिक हो गया है।

 

 

 

क्या है ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’?

 

इस विचार के तहत लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की बात की जाती है। वर्तमान में भारत में लगभग हर साल किसी न किसी राज्य में चुनाव होते हैं जिससे सरकार की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है, खर्च बढ़ता है और प्रशासनिक बोझ बढ़ता है।

 

 

 

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

 

1951–52 से लेकर 1967 तक, भारत में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव साथ-साथ होते थे।

 

लेकिन 1968–69 में कुछ राज्यों की विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गईं, जिससे चक्र टूट गया और अलग-अलग समय पर चुनाव होने लगे।

 

 

 

 

इस प्रणाली के पक्ष में तर्क:

 

1. खर्च में कमी:

बार-बार चुनाव कराने में चुनाव आयोग को भारी धन और संसाधन खर्च करने पड़ते हैं। एक साथ चुनाव से बजट पर बोझ कम होगा।

 

 

2. प्रशासन पर प्रभाव कम:

बार-बार चुनाव होने से प्रशासन, सुरक्षा बल और शिक्षकों को बार-बार चुनाव ड्यूटी पर लगाया जाता है। इससे विकासात्मक कार्यों पर असर पड़ता है।

 

 

3. नीतिगत निर्णयों में स्थिरता:

आचार संहिता लागू होने से विकास योजनाएँ ठप पड़ जाती हैं। एक साथ चुनाव से यह व्यवधान कम होगा।

 

 

4. राजनीतिक फोकस:

लगातार चुनावी राजनीति से हटकर नेता नीतियों और प्रशासन पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगे।

 

 

 

 

 

इस प्रणाली के विरोध में तर्क:

 

1. संविधानिक जटिलता:

संविधान के अनुच्छेद 83(2), 85, 172, 174 आदि में बदलाव आवश्यक होगा।

राज्यों के अधिकारों में हस्तक्षेप की आशंका है।

 

 

2. संघवाद पर प्रभाव:

भारत एक संघात्मक देश है, जहाँ राज्य सरकारों की स्वतंत्रता है। सब राज्यों को एक ही समय पर चुनाव के लिए बाध्य करना संघीय ढांचे के खिलाफ माना जा सकता है।

 

 

3. लोकतंत्र को नुकसान:

बार-बार चुनाव जनता को सरकार का आकलन करने का अवसर देते हैं। यह अवसर कम हो सकता है।

 

 

4. अन्य व्यावहारिक दिक्कतें:

यदि किसी राज्य की सरकार गिर जाए तो क्या पूरे देश में फिर चुनाव होंगे? क्या राष्ट्रपति शासन की अवधि बढ़ाई जाएगी?

 

 

 

 

 

UPSC के दृष्टिकोण से क्यों महत्वपूर्ण?

 

यह विषय GS Paper II (Governance, Polity) और Essay Paper दोनों में पूछा जा सकता है।

 

यह संविधान, चुनाव आयोग, संघवाद, लोकतंत्र और प्रशासनिक सुधार से जुड़ा विषय है।

 

2024 में इस पर हाई लेवल कमेटी (रामनाथ कोविंद समिति) बनी है, जिससे इसकी प्रासंगिकता और बढ़ गई है।

 

 

 

 

निष्कर्ष:

 

“वन नेशन, वन इलेक्शन” एक अभिनव विचार है, लेकिन इसे लागू करने के लिए संवैधानिक, प्रशासनिक और राजनीतिक सहमति आवश्यक है। लोकतंत्र और संघवाद के बीच संतुलन बनाते हुए ही इसे आगे बढ़ाया जा सकता है।

 

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