गणेश चतुर्थी 2025: पूजा और महत्व
इतिहास, महत्व, पूजा विधि और आधुनिक उत्सव:-
गणेश चतुर्थी, जिसे विनायक चतुर्थी या गणेशोत्सव भी कहा जाता है, भगवान गणेश जी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में गणेश जी को विघ्नहर्ता (सभी बाधाओं को दूर करने वाले) और सिद्धि-विनायक (सभी कार्यों में सफलता प्रदान करने वाले) के रूप में पूजा जाता है। यह पर्व हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को आता है और देशभर में बड़े उत्साह से मनाया जाता है।

भारत के अलावा दुनिया के कई हिस्सों जैसे नेपाल, मॉरीशस, अमेरिका, कनाडा, यूके आदि में बसे भारतीय समुदाय भी इस पर्व को धूमधाम से मनाते हैं।
गणेश चतुर्थी का इतिहास
गणेश चतुर्थी का सबसे पहला उल्लेख पुराणों और प्राचीन शास्त्रों में मिलता है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती ने भगवान गणेश को मिट्टी से बनाया और उनमें प्राण प्रतिष्ठा की। जब भगवान शिव ने उन्हें बिना अनुमति घर के द्वार पर रोका, तो क्रोधित होकर उनका सिर काट दिया। बाद में शिवजी ने गणेश जी को हाथी का सिर लगाकर पुनर्जीवित किया और उन्हें सर्वप्रथम पूज्य देवता होने का आशीर्वाद दिया।
इतिहासकारों के अनुसार, सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत छत्रपति शिवाजी महाराज के समय हुई थी। लेकिन इसे एक जनआंदोलन के रूप में लोकप्रिय बनाने का श्रेय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को जाता है। 1893 में तिलक ने गणेशोत्सव को सार्वजनिक रूप दिया ताकि ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को एकजुट किया जा सके।
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गणेश चतुर्थी का धार्मिक महत्व
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विघ्नहर्ता – भगवान गणेश की पूजा करने से जीवन की सभी बाधाएँ दूर होती हैं। 
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सिद्धि और बुद्धि के देवता – गणेश जी को बुद्धि, ज्ञान और सफलता का देवता माना जाता है। 
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शुभ कार्यों की शुरुआत – किसी भी मांगलिक कार्य की शुरुआत गणेश वंदना के बिना अधूरी मानी जाती है। 
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सामाजिक एकता – यह पर्व समाज में भाईचारा और एकजुटता का प्रतीक है। 
गणेश चतुर्थी 2025 की तारीख
वर्ष 2025 में गणेश चतुर्थी का पर्व 27अगस्त 2025 (बुधवार ) को मनाया जाएगा। गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन तक कुल 10 दिन तक उत्सव चलता है।
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि
गणेश चतुर्थी की पूजा बड़ी श्रद्धा और विधि-विधान से की जाती है।
पूजा सामग्री
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गणेश जी की प्रतिमा (मिट्टी या धातु की) 
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दूर्वा (तीन पत्तों वाली घास) 
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मोदक और लड्डू 
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लाल पुष्प और सिंदूर 
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नारियल और कलश 
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दीपक और धूप 
पूजन विधि
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प्रतिमा स्थापना – सुबह शुभ मुहूर्त में गणेश जी की प्रतिमा को स्थापित करें। 
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संकल्प – हाथ में जल, फूल लेकर व्रत व पूजा का संकल्प लें। 
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आवाहन और पूजन – गणपति जी का आवाहन कर दूर्वा, पुष्प, लड्डू अर्पित करें। 
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आरती – गणेश आरती गाकर दीपक जलाएँ। 
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भोग – भगवान गणेश को मोदक का भोग लगाएँ। 
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व्रत कथा सुनना – गणेश चतुर्थी व्रत कथा सुनना व सुनाना आवश्यक है। 
गणेश चतुर्थी की व्रत कथा
प्राचीन कथा के अनुसार, एक बार चंद्रमा ने गणेश जी का उपहास किया। गणेश जी ने क्रोधित होकर चंद्रमा को शाप दिया कि जो भी व्यक्ति गणेश चतुर्थी को तुम्हें देखेगा, वह कलंकित होगा। बाद में चंद्रमा के प्रार्थना करने पर गणेश जी ने कहा कि इस दिन उनकी झलक देखने से झूठा आरोप लग सकता है। तभी से इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित माना जाता है।
गणेशोत्सव का आधुनिक स्वरूप
आज गणेशोत्सव केवल धार्मिक पर्व ही नहीं बल्कि एक सांस्कृतिक महोत्सव बन चुका है।
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महाराष्ट्र – यहां गणेशोत्सव का सबसे भव्य रूप देखने को मिलता है। मुंबई का लालबागचा राजा देशभर में प्रसिद्ध है। 
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पंडाल सजावट – जगह-जगह भव्य पंडाल सजाए जाते हैं, जिनमें लाखों लोग दर्शन करने आते हैं। 
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सामाजिक संदेश – कई गणेश पंडाल समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और एकता का संदेश देते हैं। 
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गणेश विसर्जन – दसवें दिन धूमधाम से गणेश जी का विसर्जन किया जाता है, जिसे अनंत चतुर्दशी कहते हैं। 
गणेश चतुर्थी और पर्यावरण
बीते कुछ वर्षों में प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की प्रतिमाओं के कारण पर्यावरण प्रदूषण बढ़ गया है। अब लोग इको-फ्रेंडली गणेश प्रतिमा की ओर बढ़ रहे हैं।
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मिट्टी की प्रतिमा बनाना 
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बीज गणपति (जो विसर्जन के बाद पौधा बन जाए) 
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तालाब/घर में छोटे गमलों में विसर्जन 
यह कदम पर्यावरण को सुरक्षित रखने और संस्कृति को संतुलित करने में मददगार है।
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Q1. गणेश चतुर्थी 2025 कब है?
👉 27अगस्त 2025 (बुधवार ) को गणेश चतुर्थी मनाई जाएगी।
Q2. गणेश चतुर्थी पर क्या नहीं करना चाहिए?
👉 इस दिन चंद्र दर्शन वर्जित है और व्रत के दौरान तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए।
Q3. गणेश जी का प्रिय भोग क्या है?
👉 मोदक, लड्डू और दूर्वा घास गणेश जी को सबसे प्रिय हैं।
Q4. गणेशोत्सव कितने दिन चलता है?
👉 गणेश स्थापना से लेकर विसर्जन तक 10 दिन तक उत्सव चलता है।
निष्कर्ष
गणेश चतुर्थी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं बल्कि भक्ति, आस्था, संस्कृति और एकता का संगम है। भगवान गणेश को विघ्नहर्ता और सिद्धिदाता माना जाता है, इसलिए हर शुभ कार्य उनकी पूजा से ही शुरू होता है।
आज के समय में हमें गणेशोत्सव को आध्यात्मिक आस्था और पर्यावरण संतुलन दोनों के साथ जोड़कर मनाना चाहिए। मिट्टी की प्रतिमा, स्वच्छता और समाज सेवा को अपनाकर ही यह पर्व अपनी वास्तविक महिमा को बनाए रख सकता है।
 
					