हिंदी साहित्य का इतिहास | UPSC Notes | Hindi Sahitya Ka Itihas

हिंदी साहित्य का इतिहास : उद्भव, विकास और प्रमुख प्रवृत्तियाँ

 

परिचय

हिंदी साहित्य भारतीय संस्कृति, दर्शन और समाज का दर्पण है। यह न केवल भाषा की समृद्ध परंपरा को दर्शाता है, बल्कि समाज की ऐतिहासिक, धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों को भी प्रकट करता है। हिंदी साहित्य का विकास विभिन्न कालखंडों में हुआ है, जिसमें प्रत्येक युग ने अपनी अलग विशेषता, धारा और प्रवृत्ति को जन्म दिया।

 

 

 

1. हिंदी भाषा और साहित्य का उद्भव

 

हिंदी भाषा का उद्गम संस्कृत से माना जाता है। संस्कृत से प्राकृत, प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से हिंदी का स्वरूप विकसित हुआ।

 

संस्कृत (1500 ईसा पूर्व से) – वेद, उपनिषद, महाकाव्य (रामायण, महाभारत)

 

प्राकृत और पाली (1000 ईसा पूर्व – 500 ईस्वी) – लोकभाषा का रूप

 

अपभ्रंश (500–1000 ईस्वी) – हिंदी की नींव

 

अवहट्ट (8वीं–10वीं शताब्दी) – खड़ी बोली की झलक

 

हिंदी (1000 ईस्वी के बाद) – एक स्वतंत्र भाषा के रूप में उद्भव

 

 

 

 

2. हिंदी साहित्य के काल विभाजन

 

हिंदी साहित्य का इतिहास विद्वानों ने अलग–अलग तरीके से बाँटा है, परंतु आचार्य रामचंद्र शुक्ल का विभाजन सबसे मान्य है।

 

(क) आदिकाल (1000–1375 ई.)

 

इसे वीरगाथा काल भी कहते हैं।

 

प्रमुख काव्य : पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई)

 

विषय : वीरता, युद्ध, राजाओं के गौरव का वर्णन

 

भाषा : प्रारंभिक खड़ी बोली और ब्रजभाषा

 

विशेषता : राष्ट्र गौरव और शौर्य

 

 

 

 

(ख) भक्तिकाल (1375–1700 ई.)

 

हिंदी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। इसमें दो धाराएँ हैं –

 

1. निर्गुण काव्य धारा

 

कवि : कबीर, दादू, रैदास, गुरुनानक

 

विशेषता : ईश्वर की निराकार भक्ति, समाज–सुधार, जातिवाद विरोध

 

 

 

2. सगुण काव्य धारा

 

कवि : सूरदास (श्रृंगारिक भक्ति), तुलसीदास (रामभक्ति), मीराबाई (कृष्णभक्ति)

 

विशेषता : भक्ति–रस, लोकभाषा में भक्ति का प्रचार

 

 

 

 

 

 

(ग) रीतिकाल (1700–1900 ई.)

 

इसे श्रृंगार काव्य काल भी कहा जाता है।

 

विषय : नायक–नायिका भेद, श्रृंगार, सौंदर्य और प्रेम

 

प्रमुख कवि : बिहारी, केशवदास, भूषण, देव

 

भाषा : ब्रजभाषा

 

विशेषता : दरबारी संस्कृति का प्रभाव, अलंकारिक भाषा

 

 

 

 

(घ) आधुनिक काल (1900 ई. से वर्तमान)

 

आधुनिक हिंदी साहित्य को तीन उपधाराओं में बाँटा गया है:

 

1. भारतीय पुनर्जागरण और नवजागरण (1900–1936 ई.)

 

प्रवृत्ति : राष्ट्रीय चेतना, सामाजिक सुधार, स्वतंत्रता आंदोलन

 

कवि : भारतेंदु हरिश्चंद्र (आधुनिक हिंदी साहित्य के जनक), जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’

 

गद्य : प्रेमचंद (उपन्यास सम्राट), आचार्य रामचंद्र शुक्ल (आलोचना), महावीर प्रसाद द्विवेदी

 

 

 

2. प्रयोगवाद और नई कविता (1936–1960 ई.)

 

कवि : अज्ञेय (प्रयोगवाद), धर्मवीर भारती, नागार्जुन, शमशेर बहादुर सिंह

 

विशेषता : अस्तित्ववाद, स्वतंत्रता के बाद की चुनौतियाँ

 

 

 

3. समकालीन हिंदी साहित्य (1960 के बाद)

 

विषय : राजनीति, समाज, आर्थिक असमानता, स्त्री विमर्श, दलित साहित्य

 

लेखक : निर्मल वर्मा, भीष्म साहनी, रघुवीर सहाय, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

 

 

 

 

 

 

3. हिंदी साहित्य की प्रमुख विधाएँ

 

काव्य (Poetry)

 

भक्ति काव्य, रीतिकाव्य, छायावाद, प्रगतिवाद, नई कविता

 

कवियों ने साहित्य को लोक–जीवन से जोड़ा

 

 

गद्य (Prose)

 

उपन्यास : प्रेमचंद (गोदान), रेणु (मैला आँचल), यशपाल

 

कहानी : मुंशी प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, मोहन राकेश

 

निबंध और आलोचना : हजारी प्रसाद द्विवेदी, नामवर सिंह

 

 

 

 

4. हिंदी साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ

 

भक्ति भावना – ईश्वर प्रेम और मानवता

 

राष्ट्रीयता – स्वतंत्रता संग्राम में साहित्य ने जनता को जागरूक किया

 

समाज सुधार – जातिवाद, पर्दा प्रथा, अंधविश्वास का विरोध

 

आधुनिकता और प्रयोग – नए विषय, नई शैलियाँ, नई अभिव्यक्ति

 

स्त्री विमर्श और दलित साहित्य – समानता और न्याय की आवाज

 

 

 

 

5. हिंदी साहित्य का महत्व

 

यह भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक धरोहर है।

 

स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी लेखकों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।

 

साहित्य ने समाज को नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक चेतना दी।

 

आज के युग में भी हिंदी साहित्य समाज के प्रश्नों और मानवीय संवेदनाओं को अभिव्यक्त करता है।

 

 

 

 

निष्कर्ष

 

हिंदी साहित्य का इतिहास केवल भाषा या साहित्य का इतिहास नहीं है, बल्कि यह भारतीय समाज, संस्कृति और सभ्यता का दर्पण है। आदिकाल के शौर्य से लेकर भक्तिकाल की आध्यात्मिकता, रीतिकाल की सौंदर्य दृष्टि और आधुनिक काल की राष्ट्रीय चेतना तक – हिंदी साहित्य ने हर दौर में समय के साथ अपने को ढाला है। यही कारण है कि आज भी हिंदी साहित्य भारतीय जीवन का मार्गदर्शक और प्रेरणास्रोत बना हुआ है।

 

10 Important MCQs : हिंदी साहित्य का इतिहास

Q1. हिंदी भाषा का उद्भव किस भाषा से माना जाता है?
(a) पाली
(b) अपभ्रंश
(c) प्राकृत
(d) संस्कृत

✔️ उत्तर: (b) अपभ्रंश

Q2. आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिंदी साहित्य को कितने कालों में बाँटा है?
(a) 2
(b) 3
(c) 4
(d) 5

✔️ उत्तर: (b) 3 (आदिकाल, भक्तिकाल, रीतिकाल, आधुनिक काल को आधुनिक में मिलाकर 3 मुख्य काल)

Q3. ‘पृथ्वीराज रासो’ किस काल की रचना है?
(a) आदिकाल
(b) भक्तिकाल
(c) रीतिकाल
(d) आधुनिक काल

✔️ उत्तर: (a) आदिकाल

Q4. ‘निर्गुण भक्ति धारा’ के प्रमुख कवि कौन हैं?
(a) सूरदास
(b) तुलसीदास
(c) कबीर
(d) मीराबाई

✔️ उत्तर: (c) कबीर

Q5. ‘रीतिकाल’ को और किस नाम से जाना जाता है?
(a) भक्तिकाल
(b) श्रृंगार काल
(c) वीरगाथा काल
(d) नवजागरण काल

✔️ उत्तर: (b) श्रृंगार काल

Q6. “आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक” किसे कहा जाता है?
(a) महावीर प्रसाद द्विवेदी
(b) भारतेंदु हरिश्चंद्र
(c) प्रेमचंद
(d) जयशंकर प्रसाद

✔️ उत्तर: (b) भारतेंदु हरिश्चंद्र

Q7. ‘गोदान’ उपन्यास किस लेखक की कृति है?
(a) फणीश्वरनाथ रेणु
(b) अज्ञेय
(c) प्रेमचंद
(d) यशपाल

✔️ उत्तर: (c) प्रेमचंद

Q8. ‘मैला आँचल’ उपन्यास किसकी रचना है?
(a) भीष्म साहनी
(b) फणीश्वरनाथ रेणु
(c) निर्मल वर्मा
(d) अमृतलाल नागर

✔️ उत्तर: (b) फणीश्वरनाथ रेणु

Q9. ‘प्रयोगवाद’ के जनक किसे माना जाता है?
(a) नागार्जुन
(b) अज्ञेय
(c) शमशेर बहादुर सिंह
(d) धर्मवीर भारती

✔️ उत्तर: (b) अज्ञेय

Q10. समकालीन हिंदी साहित्य में कौन–सी प्रवृत्ति प्रमुख रही है?
(a) भक्तिभाव
(b) अलंकारवाद
(c) स्त्री विमर्श और दलित साहित्य
(d) श्रृंगार रस

✔️ उत्तर: (c) स्त्री विमर्श और दलित साहित्य

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